भगवान श्रीकृष्ण भारतीय संस्कृति और धर्म के एक ऐसे केंद्रबिंदु हैं, जिनका पूजन श्रद्धा, भक्ति और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। श्रीकृष्ण केवल एक देवता ही नहीं, अपितु एक जीवन दर्शन हैं — जो प्रेम, करुणा, ज्ञान, नीति और धर्म के आदर्श को प्रस्तुत करते हैं।
कृष्णा पूजन का महत्व अनेकों रूपों में प्रकट होता है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मा की उस यात्रा का प्रारंभ है जो ईश्वर के प्रति समर्पण और आत्मिक शांति की ओर ले जाती है।
1. भक्ति का स्वरूप
श्रीकृष्ण का पूजन प्रेम और भक्ति के साथ किया जाता है। ‘राधा-कृष्ण’ की प्रेम कथा यह दर्शाती है कि ईश्वर को पाने के लिए निःस्वार्थ प्रेम और समर्पण आवश्यक है। कृष्णा पूजन से हृदय में भक्ति भाव उत्पन्न होता है और मन शुद्ध होता है।
2. धर्म और नीति का बोध
भगवद गीता के उपदेशों के माध्यम से श्रीकृष्ण ने जो जीवन दर्शन दिया, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है। कृष्णा पूजन करते समय हम उनके द्वारा बताई गई नीतियों को अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करते हैं।
3. सकारात्मक ऊर्जा और मन की शांति
कृष्ण पूजन से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। विशेष रूप से मुरली बजाते हुए बाल कृष्ण की पूजा से वातावरण मधुर और शांतिपूर्ण बनता है, जिससे मन को भी सुकून मिलता है।
4. संकटों से रक्षा
श्रीकृष्ण को संकटमोचक माना गया है। वे अपने भक्तों की हर स्थिति में रक्षा करते हैं। पूजा के माध्यम से उनका आशीर्वाद प्राप्त कर व्यक्ति जीवन की कठिनाइयों का सामना सहजता से कर सकता है।
5. सांस्कृतिक एकता का प्रतीक
कृष्णा पूजन केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की एकता और विविधता का प्रतीक भी है। देश के विभिन्न हिस्सों में जन्माष्टमी और अन्य कृष्ण पर्व अलग-अलग रीति-रिवाजों से मनाए जाते हैं, जो हमें एक सूत्र में बाँधते हैं।